


निर्जला एकादशी ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है और सभी एकादशी में इसका विशेष महत्व है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं? आइए यहां जानते हैं इसकी असल वजह और इस व्रत का धार्मिक महत्व।
भीमसेनी एकादशी नाम कैसे पड़ा?
निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी कहने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। दरअसल, एक बार महर्षि व्यास से भीम ने पूछा कि वह अपनी उदर अग्नि के चलते एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं तो, वो ऐसा क्या करें, जिससे उन्हें 24 एकादशी का फल मिल जाए? तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का निर्जला व्रत रखने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि इस एक एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी एकादशी के व्रत का फल मिलता है।
निर्जला एकादशी का धार्मिक महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत बहुत शुभ माना जाता है। इस व्रत को रखने से शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत के प्रभाव से दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह भी माना जाता है कि इस एकादशी का व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा मिलती है।
निर्जला एकादशी व्रत नियम
निर्जला एकादशी सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन द्वादशी के सूर्योदय तक चलता है। इसमें निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उनके मंत्रों का जाप किया जाता है। वहीं, अगले दिन स्नान के बाद जरूरतमंदों को दान दिया जाता है और फिर व्रत का पारण किया जाता है।
निर्जला एकादशी का महत्व और लाभ
निर्जला एकादशी का व्रत बहुत कठिन है, लेकिन इसका फल अपार है। इस व्रत को रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है। यह व्रत उन लोगों के लिए विशेष महत्व रखता है, जो अन्य एकादशी का व्रत रखने में असमर्थ होते हैं।